इकबार अपने घर से बाहर निकल के देख
है झुनझुना मोहब्बत ये जानते हैं फिर भी
कुछ देर के लिए ही इससे बहल के देख
किस ख़ाक में जवानी हमने गुजार दी है
ये देखना अगर हो दुनिया टहल के देख
ये क्या कि छोटे छोटे सपनों की सैर करना
गर देखना है सपना रंगो-महल के देख
कुछ बात बोल दी है कुछ बात है अधूरी
जो माइने छुपे हैं मेरी ग़ज़ल के देख
कविराज तरुण