विप्पति के आगार हैं , दो चौखट की चोट | एक संतरी द्वार पर , दूजा जो मांगे वोट || आनंद नहीं ! जो कम हुआ , पुरुष नहीं ! जो अधीर | हाथ नहीं आये कभी , परछाई किरण और .....नीर || ये कैसा इंसान है , जो पल पल बदले रूप | चश्मे को तो हटाईये , बड़ी सरल है ..धूप || चल अदला बदली करते हैं , तुम राजा मै चोर | पास तेरे अब राज्य है , मै घूमू सब........ ओर ||
भक्तों ! अहमदाबाद में जो अप्रिय घटना हुई उससे संत समाज का नाम खराब हुआ है | हम ऐसे संतो और ऐसे बाबाओ के सख्त विरोधी हैं | आप भी ऐसे बाबाओ से दूर रहिये | (जनहित में जारी...)
"उपदेश सरल हैं , दे देता हूँ | गरल को अमृत कह देता हूँ | जो माने मुझको , उसकी महिमा | मै सबके अन्दर ही रहता हूँ || " --- बाबाजी
" ज्ञान की प्राप्ति अगर हिम-शिलाओं पर ही जाकर होती तो निश्चय ही हिलेरी और तेनजिंग इस धरती के प्रथम और परम ज्ञानी होते | " निष्कर्ष : दिखावे पर मत जाईये ... बाबा की बूटी खाईये || --- बाबाजी